Monday, January 12, 2015

भूला ही कब था


शाम के झुटपुटे में आँख लगी
थका हुआ नहीं था फिर भी नींद आ गयी
एक सपना देखा
उन बीते हुये दिनों का !
सपने में तुम नहीं थीं
पर तुम्हारा एहसास था
तीव्र एहसास ............
भूला ही कब था
जो फिर से याद करूँ मैं
तुम्हारी और मेरी कहानी !!!


-           - हृषीकेश वैद्य 

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