बरसों पुरानी बात....
खचाखच भरी प्राइवेट बस,
झाबुआ का माचलिया घाट
बौराया फागुन ,
भगोरिया का मदमाता उल्लास ...
झाबुआ का माचलिया घाट
बौराया फागुन ,
भगोरिया का मदमाता उल्लास ...
उफ़ ,
कि उत्सव को सूँघ ले कोई
अपनी आँखें मीच कर !
कहीं से इस गीत का अंतरा लहराता हुआ आया
और समा गया मेरे कानों में ।
कि उत्सव को सूँघ ले कोई
अपनी आँखें मीच कर !
कहीं से इस गीत का अंतरा लहराता हुआ आया
और समा गया मेरे कानों में ।
उसके बाद,
बस कब-कब रुकी
और कब चल पड़ी
कुछ भी याद नहीं ।
बस कब-कब रुकी
और कब चल पड़ी
कुछ भी याद नहीं ।
तुम जो ख़यालों से निकल कर आ बैठी थीं,
बगल वाली सीट पर !!!
बगल वाली सीट पर !!!
- हृषीकेश वैद्य