Monday, November 23, 2015

प्रतीक्षालय में बैठा ...आखिरी यात्री



कह न सका तुमसे ... 
पर उस दिन कार में 
इसी गीत के झोंकों ने 
मेरे आँसुओं को सुखाया था 
....
अपनी हवा से !
अक्सर रात में 
जब तुम सो जाती हो 
अचानक ये गीत अनेक बन जाता है 
और भरने लगता है मेरे दिल में 
अगले दिन के लिए 
कुछ और धड़कने !!

वरना मैं क्या ?
मैं तो प्रतीक्षालय में बैठा 
वो आखिरी यात्री हूँ 
जिसे पता है 
कि उसकी ट्रेन कभी नहीं आएगी !!!

-    हृषीकेश वैद्य

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