ये उन दिनों की बात है
जब मैं तुम्हारी राह देखा करता था ।
मानो सात – आठ साल का बच्चा कोई
हर दिन करता रहता है, होली – दिवाली का इंतज़ार।
जाने क्यूँ लगता था
कि तुम हो...
मेरे आस-पास ही कहीं
बस धुंध नहीं छँटी है अभी।
गिटार की स्ट्रिंग जैसे जैसे झनझनाती
मेरा दिल भी वैसे ही धड़कने लगता ।
झक झक-झक, झक झक-झक !!
अरे हाँ
एक बात पर गौर ज़रूर करना ....
पुरुष-स्वर भी हो सकता है
इतना रेशमी
इतना मुलायम !!!
जब मैं तुम्हारी राह देखा करता था ।
मानो सात – आठ साल का बच्चा कोई
हर दिन करता रहता है, होली – दिवाली का इंतज़ार।
जाने क्यूँ लगता था
कि तुम हो...
मेरे आस-पास ही कहीं
बस धुंध नहीं छँटी है अभी।
गिटार की स्ट्रिंग जैसे जैसे झनझनाती
मेरा दिल भी वैसे ही धड़कने लगता ।
झक झक-झक, झक झक-झक !!
अरे हाँ
एक बात पर गौर ज़रूर करना ....
पुरुष-स्वर भी हो सकता है
इतना रेशमी
इतना मुलायम !!!
- हृषीकेश
वैद्य
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